Tree and Travellers Kids Story: पेड़ और यात्री: एक प्यारी और शिक्षाप्रद कहानी

दो यात्री, एक बड़े पेड़ के नीचे धूप में आराम करते हुए।पेड़ छाया और आराम देकर यात्रियों को कृतज्ञता का पाठ सिखाता है।

Kids Story: गर्मी और थकान से परेशान यात्रियों को एक पेड़ ने दी ठंडी छाया और राहत। पढ़ें इस पेड़ और यात्री की कहानी और जानें कृतज्ञता का असली महत्व।

बहुत समय पहले की बात है, एक बड़ा और सुंदर पेड़ था। उसकी मोटी तना और फैली हुई शाखाएँ बहुत दूर तक छाया करती थीं। यह पेड़ सूखी और बंजर ज़मीन के बीचों-बीच खड़ा था। लोग इसे बहुत पसंद करते थे, क्योंकि यह यात्रियों को ठंडी छाया और आराम देता था। पास के चार छोटे कस्बे और कुछ गाँवों के यात्री यहाँ अक्सर रुकते थे। यह पेड़ उनके लिए एक राहत और विश्राम का स्थान बन गया था।

दो यात्रियों की यात्रा

एक दिन, दो यात्री लंबी दूरी तय करके इस पेड़ के पास पहुँचे। उस दिन सूरज तेज़ चमक रहा था और गर्मी असहनीय थी। ज़मीन इतनी गर्म थी कि उनके पैर जल रहे थे। पेड़ को देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन्होंने जल्दी से पेड़ के नीचे जगह बनाई और उसकी ठंडी छाया में बैठ गए।

थकावट से भरे वे दोनों कुछ ही देर में सो गए। पेड़ की शाखाएँ ठंडी हवा दे रही थीं, और यह उन्हें बहुत सुकून दे रही थी।

गुस्सा और शिकायत

कुछ समय बाद, एक यात्री को भूख लगी। उसने सोचा कि शायद पेड़ पर कुछ फल हों। लेकिन जब उसने ऊपर देखा, तो उसे कोई फल नहीं दिखा। यह देखकर वह गुस्से में आ गया। उसने पेड़ को कोसते हुए कहा, “यह पेड़ तो बिल्कुल बेकार है! इसमें न कोई फल है, न कोई खाने की चीज़। यह हमारे किसी काम का नहीं।”

दूसरा यात्री, जो शांत स्वभाव का था, उसे समझाने की कोशिश करते हुए बोला, “दोस्त, ऐसा मत कहो। सोचो, जब हम यहाँ आए, तो कितनी गर्मी थी। अगर यह पेड़ न होता, तो हम यहाँ रुक ही नहीं पाते। इसने हमें छाया दी, जिससे हमें राहत मिली।”

लेकिन पहला यात्री मानने को तैयार नहीं था। वह बार-बार पेड़ को बुरा-भला कहता रहा।

पेड़ की प्रतिक्रिया

पेड़, जो अब तक चुप था, आखिरकार बोल पड़ा। उसने गहरी और दुखी आवाज़ में कहा, “तुम मुझसे ऐसा क्यों कह रहे हो? जब तुम यहाँ आए, तो सूरज की तपिश से परेशान थे। मैंने तुम्हें अपनी छाया दी, जिससे तुम आराम कर सके। अगर मैं यहाँ न होता, तो तुम इस गर्मी में टिक नहीं पाते। अब जब तुम्हारी जरूरत पूरी हो गई, तो तुम मुझे बेकार कह रहे हो? क्या यही इंसानियत है?”

माफी और सीख

पेड़ की बात सुनकर पहले यात्री को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तुरंत पेड़ से माफी मांगी। उसने कहा, “मुझे माफ कर दो। मैंने गुस्से और भूख में आकर ऐसा कहा। अब मैं समझ गया हूँ कि तुम्हारा महत्व कितना बड़ा है।”

पेड़ ने मुस्कुराते हुए उसे माफ कर दिया। उसने कहा, “मदद करना और क्षमा करना ही मेरा धर्म है।”

शिक्षा:

हमें हमेशा आभारी होना चाहिए। जो चीज़ें हमें आराम और राहत देती हैं, उनका सम्मान करना चाहिए। दूसरों की मदद और उनकी अच्छाई के प्रति कृतज्ञता दिखाना हमें एक अच्छा इंसान बनाता है। कभी भी किसी की उपयोगिता को नज़रअंदाज़ न करें, क्योंकि हर चीज़ का अपना महत्व होता है।

By SARIKA

My name is SARIKA. I have completed B.Ed and D.El.Ed. I am passionate about teaching and writing. Driven by this interest, I am associated with the Basic Shiksha Portal. My goal is to contribute to the field of education and provide helpful resources for children's development.

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