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जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना कैसे करें और सकारात्मकता के साथ सफलता पाएं। इस लेख में जानें आलू, अंडा और चायपत्ती की कहानी से प्रेरक सीख। Bachcho ki kahani
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एक बार की बात है, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में एक लड़की रहती थी, जिसका नाम माया था। माया हमेशा परेशान और चिड़चिड़ी रहती थी। उसे हर छोटी-बड़ी बात से शिकायत रहती और जीवन के प्रति उसका नजरिया नकारात्मक था।
एक दिन, जब माया को ऐसा महसूस हुआ कि जीवन में परेशानियाँ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहीं, तो वह अपने पिता से मिलने गई। उसने शिकायत करते हुए कहा,
“पिता जी, मेरी ज़िंदगी बहुत मुश्किल हो गई है। एक समस्या सुलझाती हूँ तो दूसरी आ जाती है। मैं बहुत थक गई हूँ। मुझे समझ नहीं आता कि मैं क्या करूँ।”
पिता ने उसकी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोले,
“बेटा, चिंता मत करो। आओ, तुम्हें कुछ दिखाता हूँ।”
पिता उसे रसोईघर में ले गए। माया थोड़ी हैरान हुई और बोली,
“आप मुझे रसोई में क्यों लेकर आए हैं? क्या आप चाहते हैं कि मैं कुछ बनाऊँ?”
पिता हँसते हुए बोले,
“नहीं, बस थोड़ा इंतजार करो और देखो।”
उन्होंने तीन बर्तन निकाले और हर बर्तन में एक-एक कप पानी डाला। फिर उन बर्तनों को चूल्हे पर रख दिया। जब पानी उबलने लगा, तो पिता ने पहले बर्तन में एक आलू डाला, दूसरे में एक अंडा और तीसरे में चाय की पत्तियाँ।
माया को यह देखकर और भी गुस्सा आने लगा। उसने झुँझलाते हुए पूछा,
“पिता जी, आप ये सब क्यों कर रहे हैं? मुझे कोई खेल देखने का मन नहीं है!”
पिता ने शांत स्वर में कहा,
“थोड़ा धैर्य रखो, बेटा। बस 15 मिनट और।”
माया बेमन से इंतजार करने लगी।
15 मिनट बाद, पिता ने चूल्हा बंद कर दिया। उन्होंने आलू को एक प्लेट में निकाला, अंडे को छीलकर दूसरी प्लेट में रखा और चाय को छानकर एक प्याली में डाल दिया। फिर उन्होंने माया के सामने प्लेट और प्याली रख दीं।
पिता ने पूछा,
“माया, अब बताओ, तुम्हें यहाँ क्या दिख रहा है?”
माया ने जवाब दिया,
“आलू, अंडा और एक प्याली चाय।”
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा,
“नहीं, बेटा। ज़रा ध्यान से देखो और फिर बताओ।”
माया ने फिर वही जवाब दिया।
तब पिता ने कहा,
“ठीक है, इन्हें छूकर देखो।”
माया ने आलू को छुआ तो पाया कि वह नरम हो चुका था। उसने अंडे को छुआ, वह सख्त हो चुका था। फिर उसने चाय की प्याली को सूँघा, जिसकी महक बहुत अच्छी थी।
माया ने हैरानी से पूछा,
“पिता जी, यह सब क्या मतलब है?”
पिता ने समझाते हुए कहा,
“देखो बेटा, ये तीनों चीजें एक ही परिस्थिति से गुज़रीं—उबलता हुआ पानी। लेकिन इनका व्यवहार अलग-अलग था। आलू, जो पहले बहुत सख्त और मजबूत था, उबलते पानी में नरम और कमजोर हो गया। अंडा, जो बाहर से नाजुक और अंदर से तरल था, उबलने के बाद सख्त हो गया। लेकिन चाय की पत्तियाँ सबसे अलग थीं। उन्होंने पानी को ही बदल दिया और उसे एक नई खुशबू और स्वाद दिया।”
पिता ने माया की ओर देखा और कहा,
“बेटा, जीवन में भी ऐसा ही होता है। मुश्किलें और समस्याएँ सभी के जीवन में आती हैं। लेकिन यह हमारे ऊपर है कि हम उन परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। क्या तुम आलू बनना चाहती हो, जो कठिनाइयों से कमजोर हो जाए? या अंडा, जो कठोर हो जाए? या फिर चाय की पत्तियाँ, जो मुश्किलों में भी कुछ नया और अनोखा बनाएँ?”
माया को पिता की बात समझ आ गई। उसने कहा,
“पिता जी, अब मैं समझ गई। मैं चाय की पत्तियों की तरह बनना चाहती हूँ। अब मैं परेशानियों से घबराऊँगी नहीं, बल्कि उनका सामना करूँगी और अपने जीवन को बेहतर बनाऊँगी।”
उस दिन से माया ने जीवन को एक नए नजरिए से देखना शुरू किया। उसने सीखा कि मुश्किलें हमें कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत बनाने के लिए आती हैं।
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